ये हैं 4 पैरेंटिंग काॅमन प्राॅब्लम्स |Common Parenting issues and their Solutions

बच्चे हर उम्र में, हर दौर में सीखते हैं। वे सीखते हुए ही बड़े होते हैं और सीखते-सीखते बहुत चीजें एक्सप्लोर (explore) करते हैं। कई बार उनकी लाइफ में ऐसी सिचुएशन (situation) आती है जब बतौर पैरेंट्स आपको उनकी मदद करनी (how to help children) पड़ती है। 

कहने की बात ये है कि बच्चों की लाइफ में आई प्राॅब्लम्स (problems) अकसर पैरेंट्स के लिए भी चुनौतियां (challenges) साथ लेकर आती हैं। लेकिन पैरेंट्स को इनसे डरना नहीं चाहिए। इस लेख में हम कुछ ऐसी ही चुनौतियों और उनके समाधान की (tips to help your children) बात करेंगे।

जब मेल-जोल लगे मुश्किल (Lack of Confidence)

छुटपन से ही बच्चों के कई नए दोस्त बनते हैं, कई अनजान लोगों से मुलाकात होती है। कई बार काॅन्फिडेंस की कमी (due to lack of confindence)  के कारण बच्चे सबसे मेल-जोल नहीं बढ़ा पाते। इस सिचुएशन को इग्नोर करना ठीक (do no ignore this situation) नहीं है।

ऐसे में पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चे को ऑब्ज़र्व (observe) करें और जानने की कोशिश करें कि आखिर बच्चे का काॅन्फिडेंस क्यों कम है? आप उसे नए दोस्त बनाने की सलाह (help kid make friends) दें। लेकिन ध्यान रखें कि बच्चे को कभी फोर्स नहीं करना है, उन पर कभी दबाव नहीं डालना है। 

कुछ बच्चे इंट्रोवर्ट (introvert) होते हैं, इसलिए आसानी से दूसरों के साथ घुल-मिल नहीं पाते हैं। आपको अपने बच्चे के नेचर को समझना है। उनकी कमियों पर काम करें, आपको पता चलेगा कि बच्चे में धीरे-धीरे काॅन्फिडेंस बढ़ (it will boost confidence in child) गया है।

डिजिटल एडिक्शन (Digital Addiction)

कहने की जरूरत नहीं है कि अब बच्चे हो या बड़े हो, हर किसी की लाइफ डिजिटल हो गई है। हर कोई किसी न किसी स्तर तक डिजिटल एडिक्शन का शिकार हो चुका है। बच्चे भी इससे अछूते नहीं है।

बच्चों को वीडियो गेम्स (video games) खेलना होता है, सीरीज देखनी होती है। कभी-कभी पैरेंट्स के मना करने के बावजूद बच्चे डिजीटली एक्टिव रहते हैं। ऐसे में पैरेंट्स का गुस्सा होना (parents get angry easily on kids) स्वभाविक है।

ऐसी सिचुएशन में पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चे की दिनचर्या में कुछ नया शामिल करें। कोई फिजीकल एक्टिविटी (physical addiction) को, गेम्स (games), इंडोर गेम्स indore games) आदि चीजें करने के लिए बच्चे को प्रेरित करें। उन्हें आपस बात करने को कहें।

इस तरह दूसरी तरफ इन्वाॅल्वमेंट बढ़ने से बच्चे में अपने आप डिजिटल एडिक्शन कम होने लगेगा।

झूठ बोलना (Lying)

लगभग हर बच्चे अपने पैरेंट्स से किसी न किसी मोड़ पर झूठ (nearly all children lie one time or the other) बोलते हैं। कई बार पैरेंट्स को यह बात पता चल जाती है फिर भी वे अपने बच्चे को टोकते नहीं है। इसका नतीजा यह होता है बच्चे में झूठ बोलने की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है। 

हालांकि पहली बार झूठ बोलने पर बच्चे को डांटना (do not scold your child) या मारना नहीं चाहिए। लेकिन उन्हें यह मैसेज देना जरूरी है कि झूठ बोलना अच्छी बात (tell your kid that lying is not good thing) नहीं। इसके साथ ही उन्हें यह बताएं कि सच बोलने से कभी न (never afraid to tell the truth) डरें। चाहे कितनी ही बड़ी गलती क्यों न हो जाए, हमेशा सच बोलने के लिए उन्हें प्रेरित करें। आप स्वयं भी उनके सामने कभी झूठ न बोलें।

बात न मानना (Disobedience)

पैरेंट्स बड़ी सहजता से ये बात कह देते हैं कि बच्चे बात नहीं (child disobeying their parents) सुनते। कभी-कभी पैरेंट्स बच्चे की इस आदत को एक्सेप्ट कर लेते हैं और निश्चित समय बाद बच्चे की आदत में बदलाव की उम्मीद भी छोड़ देते हैं। पैरेंटिंग का यह तरीका बिल्कुल सही नहीं है। 

सबसे पहले तो यह जानने की कोशिश करें कि आखिर वह आपकी बात क्यों नहीं मानता? उसकी बातों को आप गौर से सुनें। उसकी साइकोलाॅजी को रीड (try to understand your child psychology) करने की कोशिश करें।

ध्यान रखें कि आपका व्यवहार ही बच्चे की पर्सनालिटी (parents behaviour builds kids psychology) को गढ़ता है। बच्चे को समझने से पहले अपनी गलतियों पर भी जरूरी तौर पर ध्यान दें।

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